सर्वस्य च अहम् हृदि सन्निविष्टः
मत्तः स्मृतिः ज्ञानम् अपोहनम् च
वेदैः च सर्वैः अहम् एव वेद्यः
वेदान्त कृत् वेदवित् एव च अहम्
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥१५:१५॥
sarvasya chaaham hridi sannivishto
mattah smritirgnyaanamapohanam cha
vedaishwa sarvairahameva veddyo
vedaantakritadvedavideva chaaham ||15:15||
sarvasya cha aham hridi sannivishtah
mattah smritih gnyaanam apohanam cha
vedaih cha sarvaih aham eva vedyah
vedaanta krit vedavit eva cha aham
Purport I am also encamped in the heart of all. The memory, knowledge and reasoning are from me. In all the Vedas, I am alone the knowable. I am alone the creator of the Vedaant (end of knowledge) and the knower of the Vedas.
च (cha) -- also; and
अहम् (aham) -- I
हृदि (hridi) -- in the heart
सन्निविष्टः (sannivishtah) -- absorbed; encamped
स्मृतिः (smritih) -- the memory
ज्ञानम् (gnyaanam) -- knowledge
अपोहनम् (apohanam) -- reasoning
च (cha) -- also; and
च (cha) -- also; and
सर्वैः (sarvaih) -- with/by all
अहम् (aham) -- I
एव (eva) -- only; just; alone
वेद्यः (vedyah) -- knowable
कृत् (krit) -- doer; writer
वेदवित् (vedavit) -- the knower of the Vedas
एव (eva) -- only; just; alone
च (cha) -- also; and
अहम् (aham) -- I